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लेखनी कहानी -20-Jun-2022 घर

चैन ओ सुकून मिलता है 
या तो यार की बाहों में 
या फिर घर की पनाहों में 

याद सताती है, तड़पाती है
या तो यार दिलदार की 
या फिर घर बार की ।

जब तक इनका साथ है 
तो घबराने की क्या बात है 
मनभावन का, घर आंगन का ।

कोई कद्र नहीं है
आंख से निकले आंसू की 
घर से बेघर आदमी की 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
20.6.22 


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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 11:14 AM

बेहतरीन

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Pallavi

21-Jun-2022 05:10 PM

Nice 👍

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Gunjan Kamal

21-Jun-2022 05:00 AM

बिल्कुल सही

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